Rahim Ke Dohe >> रहीम दास के प्रसिद्ध दोहे उनके अर्थ सहित

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रहीम दास जी का नाम कौन नहीं जानता, बचपन से लेकर अब तक जिसने किताबें पढ़ी हैं वे सभी रहीम दास जी के नाम से भलीभांति परिचित होंगे क्योंकि वे अपनी एक ऐसी छवि छोड़ गे हैं जिसे भूल पाना नामुमकिन है | रहीम दास जी का पूरा नाम अब्दुल रहीम खान-ए-खाना था और वे मुग़ल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे | रहीम दास जी को एक प्रसिद्ध कवि के रूप में तो जाना ही जाता है लेकिन हम आपको बता दें कि रहीम दास जी एक कवि के साथ-साथ अच्छे सेनापति, साहित्यकार, कलाप्रेमी, दानवीर, कूटनीतिज्ञ और आश्रयदाता भी थे |

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रहीम दास जी अपने हिंदी दोहों की वजह से काभी प्रसिद्ध और लोकप्रिय कवि थे और इनके द्वारा कई किताबें भी लिखी गयी हैं जो काफी प्रेरणादायक हैं और आज के समय में भी इन किताबों को पढ़ा जाता है | आज के आर्टिकल में हम रहीमदास जी के प्रसिद्ध दोहे उनके अर्थ सहित (Rahim Ke Dohe) जानेंगे लेकिन उससे पहले रहीम दास जी का एक छोटा सा जीवन परिचय जान लेते हैं |

रहीम दास जी का संक्षिप्त जीवन परिचय (Short Biography of Rahim Das in Hindi)

रहीम दास जी का जन्म 17 दिसंबर 1556 में लाहोर (पाकिस्तान) में हुआ था और इनके पिता का नाम बैरम खान, माता का नाम सुल्ताना बेगम एवं पत्नी का नाम माहबानो था | भक्ति काल में जन्मे रहीमदास जी का धर्म इस्लाम था, दोहे और कवितायें लिखना इनका शौक था और रहीम दास जी राजा अकबर के नवरत्नों में से एक नवरत्न के रूप में जाने जाते थे | 1 अक्टूबर 1627 में 70 वर्ष की आयु में रहीम दास जी की आगरा में मृत्यु हो गयी थी और उसके बाद ये हमेशा के लिए अमर हो गए |

भक्तिकाल के समय में रहीमदास जी का हिंदी साहित्य में वेहद ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है, इन्होने अपने जीवनकाल में संस्कृत, फ़ारसी, अरबी और हिंदी जैसी कई भाषाओँ का बहुत ही गहराई से अध्यन किया था | वैसे तो रहीमदास जी राजा अकबर के दरबार में कई सारे मुख्य पदों पर कार्यरत थे लेकिन साथ ही साथ रहीम दास जी हिंदी साहित्य में भी अपना योगदान दिया करते थे |

रहीम दास जी की सबसे ख़ास बात यह थी कि वे मुसलमान होते हुए भी श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे और उनकी काव्य रचनाओं में भक्ति-प्रेम, नीति और सृंगार रस का अधिक समावेश होता था |

और पढ़ें 

रहीम की रचनाएँ

  1. रहीम सतसई
  2. श्रृंगार सतसई
  3. रहीम कवितावली
  4. रहिमन चंद्रिका
  5. बरवै नायिका-भेद
  6. रास पंचाध्यायी
  7. रहिमन विनोद
  8. मदनाष्टक
  9. रहिमन शतक (लाला भगवानदीन)
  10. रहीम विलास (सं. ब्रजरत्नदास-1948 ई., द्वितीयावृत्ति)
  11. रहीम रत्नावली (सं. मायाशंकर याज्ञिक-1928 ई.)

रहीमदास जी के प्रसिद्ध दोहों का महासागर (Rahim Ke Dohe)

दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोयजो सुख में सुमिरन करें, तो दुःख काहे होय

रहीम दास जी कहते है कि संकट में तो प्रभु को सब याद करते है, लेकिन सुख में कोई नहीं करता। यदि आप सुख में प्रभु को याद करते है, तो दुःख आता ही नहीं है |

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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सूनपानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून

इस दोहे में रहीम दास जी ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है।

1. पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम दास जी कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए।

2. पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं।

3. पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है।

रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।

“जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं। गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।”

रहीम दास जी अपने दोहें में कहते हैं कि किसी भी बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन कम नहीं होता, क्योंकि गिरिधर को कान्हा कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती है।

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।

रहीम दास जी कहते है जैसे पृथ्वी पर बारिश, गर्मी और सर्दी पड़ती है और पृथ्वी यह सहन करती है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने जीवन में सुख और दुःख सहन करना सीखना चाहिए।

ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥

अपने मन से अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दूसरों को खुशी हो और खुद भी खुश हों।

Rahim Ke Dohe in Hindi

“जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।”

रहीमदास जी ने कहा है कि जिन लोगों का स्वभाव अच्छा होता हैं, उन लोगों को बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती, जैसे जहरीले साँप सुगंधित चन्दन के वृक्ष पर लिपटे रहने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाते।

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥

जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और उबका मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।

“रहिमन धागा प्रेम का, मत टोरो चटकाय। टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय”

रहीम दास जी ने कहा है कि प्यार का नाता नाजुक होता हैं, इसे तोड़ना उचित नहीं होता। अगर ये धागा एक बार टूट जाता हैं तो फिर इसे मिलाना मुश्किल होता हैं, और यदि मिल भी जाये तो टूटे हुए धागों के बीच गांठ पड़ जाती हैं।

“दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं। जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं”

रहीम कहते हैं कि कौआ और कोयल रंग में एक समान काले होते हैं। जब तक उनकी आवाज ना सुनायी दे तब तक उनकी पहचान नहीं होती लेकिन जब वसंत रुतु आता हैं तो कोयल की मधुर आवाज से दोनों में का अंतर स्पष्ट हो जाता हैं।

रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।

कवि रहीमदास जी यहाँ पर इस दोहे में कह रहे हैं कि आंसू आँखों से बहकर मन के दुःख को बाहर प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा।

“रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत। काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।

रहीमदास जी ने क्या खूब कहा है कि गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं, और न तो दुश्मनी। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता।

Rahim Ke Dohe in Hindi

मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।।

रस, फूल, दूध, मन और मोती जब तक स्वाभाविक सामान्य रूप में है, तब तक अच्छे लगते है ।लेकिन यह एक बार टूट-फट जाए तो कितनी भी युक्तियां कर लो वो फिर से अपने स्वाभाविक और सामान्य रूप में नहीं आते।

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥

वे पुरुष धन्य हैं जो दूसरों का उपकार करते हैं। उने पर रंग उसी तरह उकर आता है जैसे कि मेंहदी बांटने वाले को अलग से रंग लगाने की जरूरत नहीं होती।

“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारी। जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी।”

बड़ी वस्तुओं को देखकर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए, जहां छोटी सी सुई का काम है वहां बड़ी तलवार क्या कर सकती हैं?

”समय पाय फल होता हैं, समय पाय झरी जात। सदा रहे नहीं एक सी, का रहीम पछितात।

हमेशा हर किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती जैसे रहीम दास जी कहते हैं कि सही समय आने पर वृक्ष पर फल लगते हैं और झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाते हैं। वैसे ही दुःख के समय पछताना व्यर्थ हैं।

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग।”

रहीमदास जी ने कहा है कि वे लोग धन्य हैं, जिनका शरीर हमेशा सबका उपकार करता हैं। जिस प्रकार मेहंदी बाटने वाले के शरीर पर भी उसका रंग लग जाता हैं। उसी तरह परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता हैं।

Rahim Ke Dohe in Hindi

रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय।नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।।

रहीमदास जी कहते हैं कि यदि आप अपने मन को एकाग्रचित रखकर काम करेंगे, तो आप अवश्य ही सफलता प्राप्त कर लेंगे। उसी प्रकार मनुष्य भी एक मन से ईश्वर को चाहे तो वह ईश्वर को भी अपने वश में कर सकता है।

rahim ke dohe in hindi

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।रहिमन मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह।।

इस दोहे में रहीम दास जी ने मछली के जल के प्रति घनिष्ट प्रेम को बताया है। मछली पकड़ने के लिए जब जाल को पानी में डाला जाता है तो जाल पानी से बाहर खींचते ही जल उसी समय जाल से निकल जाता है। परन्तु मछली जल को छोड़ नहीं पाती और वह पानी से अलग होते ही मर जाती है।

बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

रहीम दास जी कहते है कि मनुष्य को बुद्धिमानी की तरह व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि यदि किसी कारण से कुछ गलत हो जाता है तो इसे सही करना मुश्किल हो जाता है। जैसे एक बार दूध के ख़राब हो जाने से लाख कोशिश करने पर भी उसमें न तो मक्खन बनता है और न ही दूध।

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥

ओछे लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत ही इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फरजी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है।

अधम वचन काको फल्यो, बैठि ताड़ की छांह।रहिमन काम न आय है, ये नीरस जग मांह।।

रहीम दास जी कहते हैं कि जैसे ताड़ की छाया में बैठने से कोई फल नहीं मिलता, इसी प्रकार निंदनीय वचन फलदायी नहीं होते। जो मनुष्य संसार में आकर किसी के काम नहीं आते, वे मनुष्य संसार में रसहीन होते हैं ।

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥

कुछ दिन रहने वाली विपदा अच्छी होती है। क्योंकि इसी दौरान यह पता चलता है कि दुनिया में कौन हमारा हित या अनहित सोचता है।

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥

रहीमदास जी ने कहा है कि जब बुरे दिन आए हों तो चुप ही बैठना चाहिए, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।

“रूठे सृजन मनाईये, जो रूठे सौ बार। रहिमन फिरि फिरि पोईए, टूटे मुक्ता हार।”

यदि माला टूट जाये तो उन मोतियों को धागे में पिरों लेना चाहिये वैसे ही यदि आपका प्रिय व्यक्ति आपसे सौ बार भी रूठे तो उसे मना लेना चाहिए।

“जैसी परे सो सही रहे, कही रहीम यह देह। धरती ही पर परत हैं, सित घाम औ मेह।”

रहीम दास जी कहते हैं कि जैसे धरती पर सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती तो वो उसे सहती हैं वैसे ही मानव शरीर को सुख दुःख सहना चाहिये।

“खीर सिर ते काटी के, मलियत लौंन लगाय। रहिमन करुए मुखन को, चाहिये यही सजाय।”

रहीम दास जी कहते हैं कि खीरे के कड़वेपन को दूर करने के लिए उसके उपरी सिरे को काटने के बाद उस पर नमक लगाया जाता हैं इसलिए कड़वे शब्द बोलने वालों के लिये यही सजा ठीक हैं।

Rahim Ke Dohe in Hindi

जे गरिब सों हित करें, ते रहीम बड़ लोग।कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।

रहीमदास जी कहते है कि जो लोग गरीब का हित करते है, वो बहुत ही महान लोग होते है। जैसे सुदामा ने कहा है कि कान्हा की मित्रता भी एक भक्ति है।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।

रहीम दास जी कहते है कि पेड़ अपना फल स्वयं कभी नहीं खाता और सरोवर कभी अपना जल स्वयं नहीं पीता इसी प्रकार सज्जन और अच्छे व्यक्ति वो है जो दूसरों के लिए सम्पति संचित करते है।

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय।।

रहीमदास जी इस दोहे में हमें यह बताया है कि अपने मन के दुख को अपने मन में ही रखना चाहिए। क्योंकि दुनिया में कोई भी आपके दुख को बांटने वाला नहीं है। इस संसार में बस लोग दूसरों के दुख को जान कर उसका मजाक उड़ाना जानते हैं।

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।

रहीम दास जी के इस दोहे को दो अर्थों से समझा जा सकता है

जिस प्रकार किसी पौधे के जड़ में पानी देने से वह अपने हर भाग तक पानी पहुंचा देता है। उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही भगवान की पूजा-आराधना करनी चाहिए। ऐसा करने से ही उस मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।

इसके अलावा इस दोहे का दूसरा अर्थ यह है कि जिस प्रकार पौधे को जड़ से सींचने से ही फल फूल मिलते हैं। उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही समय में एक कार्य करना चाहिए। तभी उसके सभी कार्य सही तरीके से सफल हो पाएंगे।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

इस दोहे के माध्यम से रहीम दास जी यह कहना चाहते हैं कि बड़े होने का यह मतलब नहीं हैं कि उससे किसी का भला हो।जैसे खजूर का पेड़ तो बहुत बड़ा होता हैं लेकिन उसका फल इतना दूर होता है कि उसे तोड़ना बड़ी ही मुश्किल का काम है।

रहीम के दोहे Class 6 (Rahim Ke Dohe in Hindi)

Rahim ke Dohe in Hindi

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जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग ।

चंदन विष व्याप्त नहि, लपटे रहत भुजंग ।।

कवि रहीमदास जी के अनुसार जो व्यक्ति उत्तम स्वभाव का है उसको खराब व्यक्ति की संगति से कुछ भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा | जैसे चंदन के पेंड पर सांप लिप्त रहता है लेकिन चन्दन पर उसके विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता |

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पानि ।

कही रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।

रहीमदास जी कहते हैं कि जैसे वृक्ष अपना फल कभी नाही खाते, सरोवर अपना पानी कभी नहीं पीता ठीक उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति अपना धन संचय परोपकार के लिए करते हैं |

“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि ।

जहां काम आवै सुई, कहा करे तरवारी” ।।

रहीमदास जी कहते हैं कि बड़े व्यक्ति या बड़े काम को पाकर छोटे को कभी मत त्यागिये क्योंकि जो काम सुई का होता है उस काम को तलवार द्वारा कभी नहीं किया जा सकता है |

यो रहीम सुख होत हैं, उपकारी के संग ।

बाँटनवारे को लगे, ज्यों मेंहंदी का रंग ।।

उपकारी व्यक्ति कि संगत हमेशा लाभकारी होती है क्योंकि जो मेहंदी बांटता है या किसी दूसरे के हाथ में लगाता है तो मेंहदी का रंग स्वमं उसके हाथों में भी चढ़ जाता है | अर्थात उपकार करने वालों का स्वमं उपकृत हो जाता है |

कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर ।

समय पाई तरुवर फले, केतक सींचो नीर ।।

मनुष्य को अपने कार्य के प्रति अधौर नहीं होना चाहिए अर्थात धैर्य नहीं खोना चाहिए क्योंकि प्रत्येक कार्य अपने समय पर ही होता है | जैसे कि यदि पेंड को जितना भी सींच लो वह फलेगा तभी जब उसके फलने का समय होगा |

Rahim Ke Dohe Class 7

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कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत |

बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीट ||

रहीमदास जी कहते हैं कि जब हमारे पास धन संपत्ति होती है तो हमारे बहुत से मित्र और सम्बन्धी बन जाते हैं परन्तु जो व्यक्ति संकट के समय सहायता करता है वही सच्चा मित्र है |

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह |

रहिमन मछरी नीर को, तऊ छाँड़ति छोह ||

इस दोहे में कवि रहीमदास जी द्वारा बताया गया है कि जल के प्रति मछली का प्रेम बहुत गहरा है | मछली जल से प्रेम करती है लेकिन जल मछली से प्रेम नहीं करता | रहीम कहते हैं कि जब मछली पकड़ने के लिए जल में जाल को फेंका जाता है तो मछलियों के प्रति मोह छोड़कर जल जल्दी से बह जाता है लेकिन मछलियाँ जल के प्रति अपने प्रेम को खत्म नहीं कर पाती हैं इसलिए जल से बाहर आते ही मछलियाँ मर जाती हैं |

थोथे बादर क्व़ार के, ज्यों रहीम घहरात |

धनी पुरुष निर्धन भये, करें पाछिली बात ||

इस दोहे में रहीमदास जी ने क्व़ार मास के बादलों का वर्णन किया है और कहा है कि क्व़ार मास में आकाश के बिना पानी के खाली बादल केवल गरजते हैं बरसते नहीं ठीक उसी प्रकार धनी पुरुष गरीब हो जाने पर भी अपने सुख के दिनों की बातें याद करके घमंड भरी बातें नहीं बोला करते |

धरती की सी रीत है, सीट घाम औ मेह |

जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह ||

रहीमदास जी कहते हैं कि शरीर के झेलने की रीति धरती के समान होनीचाहिए | जिस प्रकार धरती सर्दी, गर्मी और बरसात की विपरीत परिस्थितियों को सहन कर लेती है उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी ऐसा ही होना चाहिए जो जीवन में आने वाले सभी सुख दुःख को झेल सके और उनसे विचलित ना हो |

रहीम के दोहे कक्षा 8  (Rahim Ke Dohe in Hindi)

rahim ke dohe class 8

Rahim Ke Dohe Class 8

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय |रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ||

मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है | जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकता है |

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय |टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय ||

रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है और इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता है | यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है |

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि |जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ||

रहीम दास जी कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए | जहां छोटी सी सुई काम आती है, वहां तलवार क्या कर सकती है |

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग |चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग ||

रहीम कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं,उनको बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती | जहरीले सांप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते |

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार |रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार ||

यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए |

जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं |गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं ||

रहीम कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती |

खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय |रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय ||

खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है | रहीम कहते हैं कि कडवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन ही ठीक सजा है |

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं |जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं ||

कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है |

रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ |जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ ||

रहीमदास जी ने कहा है कि आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। और यह बात सत्य है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा |

उम्मीद करते हैं कि उपरोक्त आर्टिकल कवि रहीमदास जी के प्रसिद्ध दोहे  (Rahim Ke Dohe) आपको पसंद आये होंगे और इनके प्रेरणादायक दोहों से आपने जरुर कुछ ना कुछ शिक्षा ग्रहण की होगी | इस आर्टिकल में हमने उन दोहों को भी लिखा है जो स्कूली बच्चे पढ़ सकते हैं और उनसे प्रेरणा ले सकते हैं |

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