उत्तराखंड का इतिहास हर उस इंसान को पता होना चाहिए जो उत्तराखंड का निवासी है और उत्तराखंड से प्रेम करता है | आज के इस आर्टिकल में हम उत्तराखंड के इतिहास के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी देने जा रहे हैं, यदि आप भी उत्तराखंड के इतिहास को जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें |
ABOUT UTTARAKHAND
उत्तराखंड भारत का 27 वां राज्य 9 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आया तथा इसका पुराना नाम उत्तरांचल था | उत्तराखंड से उत्तराँचल नाम बनाने में 6 वर्ष 1 माह 23 दिन लगे और यह यह 11वा विशेष राज्य है | उत्तराखंड को विशेष राज्य बनाने की घोषणा 2 मई 2001 को हुई, जबकि 1 अप्रैल 2001 से उत्तराखंड को 11वां विशेष राज्य माना जाने लगा |
उत्तराखंड राज्य में दो मंडल (कुमाऊं तथा गढ़वाल) और 13 जिले हैं | जिनमे से 6 जिले कुमाऊं में तथा 7 जिले गढ़वाल में स्थित हैं |
उत्तराखंड का इतिहास (wikipedia) बहुत ही गौरवपूर्ण है | पौराणिक काल से ही उत्तराखंड राज्य तपस्वियों,तीर्थ यात्रियों तथा राजा महाराजाओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है |
उत्तराखंड में कुमाऊँ को मानसखण्ड तथा गढ़वाल को केदारखण्ड के नाम से जाना जाता है | उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, तथा इसे देवस्थली पुकारा जाता है,क्योंकि पौराणिक काल से ही यहाँ पर देवी देवताओं का वास स्थान रहा है |
उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नबम्बर 2000 को की गयी थी , तब इस राज्य का नाम उत्तरांचल था, किन्तु 1 जनवरी 2007 को उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया |
उत्तराखंड का इतिहास (History of Uttarakhand)
उत्तराखंड के इतिहास को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया गया है –
- प्राचीन काल
- मध्य काल
- आधुनिक काल
प्राचीन काल (Ancient Period)
- कुणिंद शासक
- कर्तिकेयपुर राजवंश या कत्यूरी वंश
कुणिंद शासक :
- उत्तराखंड पर शासन करने वाली पहली राजनैतिक शक्ति कुणिंद जाति थी
- कुणिंद वंश का सबसे शक्तिशाली शासक अमोघभूति था
- अशोक कालीन अभिलेख से पता चलता है कि कुणिंद प्रारम्भ में मौर्यों के अधीन थे
- आसेक,गोमित्र,हरदत्त तथा शिवदत्त आदि राजा कुणिंद वंश के शासक थे , इनके कुणिंद वंश के शासक होने का अनुमान उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से मिली मुद्राओं से पता लगाया गया
- मुद्राओं में इन सभी शासकों के नाम अंकित थे
कर्तिकेयपुर राजवंश या कत्यूरी वंश :
- हर्ष की मृत्यु के पश्चात उत्तराखंड राज्य में कई छोटी छोटी शक्तियों ने शासन किया तथा इनके बाद 700 ईo में कत्यूरी वंश की स्थापना हुई
- कत्यूरी राजवंश को उत्तराखंड का प्रथम एतिहासिक राजवंश माना जाता है
- कर्तिकेयपुर शासकों की राजभाषा संस्कृत तथा लोकभाषा पालि थी
- नालंदा अभिलेख से पता चलता है किबंगाल के पाल शासक धर्मपाल द्वारा गढ़वाल पर आक्रमण किया गया था ,तथा इस आक्रमण के बाद ही कर्तिकेयपुर राज्य में खर्परदेव वंश के स्थान पर निम्बर वंश की स्थापना हुई थी
- निम्बर के द्वारा जागेश्वर में विमानों का निर्माण कराया गया था
- निम्बर के बाद उसके पुत्र ईष्टगड ने शासन किया और पहला ऐसा शासक बना जिसने उत्तराखंड को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया
मध्य काल (Medieval Period)
- कुमाऊँ का चन्द वंश
- गढ़वाल का परमार (पंवार) राजवंश
कुमाऊँ का चन्द वंश :
- चन्दवंश का संस्थापक सोमचन्द था, जो 700 ईo में गद्दी में बैठा था
- कुमाऊँ का चन्दवंश और कत्यूरी प्रारम्भ में समकालीन थे और इनमे हमेशा सत्ता के लिए संघर्ष चलता रहता था, किन्तु अंत में चन्द विजयी रहे
- चन्दों की राजधानी चम्पावत थी, तथा इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा गरुण चन्द था
- चन्द वंश का राज्य चिन्ह गाय था
गढ़वाल का परमार (पंवार) राजवंश :
- पंवार वंश के राजा प्रारम्भ में कर्तिकेयपुर के राजाओं के सामंत रहे किन्तु बाद में स्वतंत्र राजनैतिक शक्ति के रूप में स्वतंत्र हो गए
- पंवार शासकों के काल में अनेक काव्यों की रचना की गयी थी,जिनमे सबसे प्राचीन “मनोदय काव्य” है
- मनोदय काव्य के रचनाकार भरत कवि थे
आधुनिक काल (Modern Period)
- गोरखा शासन
- अंग्रेजी शासन
गोरखा शासन :
- गोरखा नेपाल के थे और बहुत शाहसी हुआ करते थे
- गोरखाओं ने 1790 में चन्द राजाओं को पराजित कर अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया था
- 1791 में गढ़वाल पर आक्रमण किया किन्तु असफल रहे और पराजित हो गए | 1803 में पुन: आक्रमण करके गढ़वाल पर विजय प्राप्त की
- 27 अप्रैल 1815 को कर्नल गार्डनर और गोरखा शासक वमशाह के बीच एक संधि हुई और वमशाह ने कुमाऊँ की सत्ता को अंग्रेजों के हाथ सौंप दिया
अंग्रेजी/ ब्रिटिश शासन:
- कुमाऊँ पर सन 1815 तक ब्रिटिश शासन का अधिकार था, किन्तु बाद में टिहरी को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों को ब्रिटिश शासक ने नॉन रेगुलेशन प्रान्त घोषित कर दिया
- इस क्षेत्र का प्रथम कमिश्नर कर्नल गार्डनर को बनाया गया
- इसके कुछ समय बाद ही कुमाऊँ जनपद का गठन किया गया और 1817 में देहरादून को सहारनपुर जनपद में शामिल कर दिया गया
- 1840 में ब्रिटिश गढ़वाल के मुख्यालय को श्रीनगर से पौड़ी स्थानांतरित कर दिया गया
- 1854 में कुमाऊँ मण्डल का मुख्यालय नैनीताल को बना दिया गया
- 1891 में नॉन रेगुलेशन प्रान्त सिस्टम समाप्त कर दिया गया
कुमाऊँ का इतिहास
उत्तराखंड का इतिहास आपने जान ही लिया है साथ ही साथ आपको कुमाऊँ के इतिहास पर भी एक नजर डालनी चाहिए जो हम आगे आर्टिकल में बताने जा रहे हैं |
कुमाऊँ क्षेत्र का नाम “कूर्मांचल” शब्द से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ कूर्मावतार भूमि है | कूर्मावतार मतलब भगवान् विष्णु का कछुआ अवतार होता है |
1300 से 1400 ईo के बीच के समय में उत्तराखंड के कत्यूरी राज्य के विघटन के बाद उत्तराखंड का पूर्वी क्षेत्र 8 अलग अलग रियासतों में विभाजित हो गया था | किन्तु 1581 ईo युद्ध के दौरान राइका हरी मल्ल(रूद्र चन्द के मामा) राजा रूद्र चन्द से पराजित हो गए और सभी विघटित क्षेत्र रूद्र चन्द के अधीन हो गए | अंत में रूद्र चन्द ने सारे विघटित क्षेत्रों को एक साथ मिलाकर सम्पूर्ण कुमाऊँ को फिर से एक कर दिया था |
गढ़वाल का इतिहास
उत्तराखंड का इतिहास और कुमाऊँ का इतिहास आपने जाना और अब आगे आप गढ़वाल के इतिहास को जानेंगे |
बताया जाता है की भारत वर्ष का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की गढ़वाल के हिमालय क्षेत्र का है | प्राचीन काल के मिले दस्तावेजों के अनुसार सम्पूर्ण भारतवर्ष में पहले रजवाड़े निवास करते थे | उन्ही दस्तावेजों के अनुसार उत्तराखंड में सबसे पहले “कत्यूरी राजवंश” के राजाओं का अधिकार था | कत्यूरी राजाओं ने शिलालेख और मंदिरों के रूप में कई महत्वपूर्ण निशान छोड़ दिए जिनकी सहायता से उत्तराखंड के इतिहास का पता लगाया गया है |
1455 से 1493 के बीच चंद्रपुरगढ़ के राजा जगतपाल एक शक्तिशाली शासक थे जिन्होंने शासन किया | 15 वीं सताव्दी के अंत में राजा अजयपाल ने चंद्रपुरगढ़ पर शासन किया तथा तब से उस क्षेत्र को गढ़वाल के नाम से जाना जाने लगा था |
राजा अजयपाल और उनके उत्तराधिकारियों के द्वारा गढ़वाल क्षेत्र में लगभग 300 साल तक शासन किया गया| इस अवधि के दौरान यहाँ के शासकों ने कुमाऊँ,मुग़ल,सिख और रोहिल्ला जैसी कई भयंकर शक्तिओं का सामना किया |
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आपने आज के आर्टिकल में जाना कि उत्तराखंड का इतिहास क्या है, कुमाऊ का इतिहास क्या है और गढ़वाल का इतिहास क्या है, उम्मीद है आपको उपरोक्त जानकारी पसंद आई होगी | यदि आप चाहते हैं कि उत्तराखंड के इतिहास को ज्यादा से ज्यादा लोग जाने तो इस आर्टिकल को शेयर करें |
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