सत्य और अहिंसा के पुजारी Mahatma Gandhi जी का जीवन परिचय (Biography)

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Table of Contents

The Biography of Mahatma Gandhi in Hindi

Mahatma Gandhi जी का प्रारम्भिक जीवन

महात्मा गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था, इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था | इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी तथा माता का नाम पुतलीबाई था | गाँधी जी के पिता पोरबन्दर के दीवान हुआ करते थे तथा माता एक धार्मिक महिला थीं | उस समय विवाह काफी कम उम्र में कर दिया जाता था, इसलिए इनका विवाह भी मात्र 13 वर्ष की आयु में ही इनके माता पिता ने करवा दिया था |

इनकी धरमपत्नी का नाम कस्तूरबाई माखंजी कपाडिया था, जिन्हें कस्तूरबा गांधी के नाम से जाना जाता है ,विवाह के समय कस्तूरबा गाँधी जी की उम्र 14 वर्ष थी | कस्तूरबा गाँधी जी से महात्मा गाँधी जी को 4 पुत्र थे जिनके नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास तथा देवदास थे |

वर्ष 1887 में महात्मा गाँधी जी ने अपनी स्कूलिंग पूरी करने के बाद वर्ष 1888 में भावनगर के सामलदास कॉलेज में दाखिला ले लिया और वहाँ से अपनी डिग्री पूर्ण करी | कॉलेज ख़त्म करने के बाद गाँधी जी लन्दन चले गए और वहाँ से वे बेरिस्टर बनकर लौटे |

Mahatma Gandhi जी का दक्षिण अफ्रीका का दौरा

वर्ष 1893 में गाँधी जी वकील के तौर पर कार्य करने दक्षिण अफ्रीका गए थे, जहाँ उन्होंने प्रथम बार नस्लीय भेदभाव का अनुभव किया | एक बार की बात है कि महात्मा गाँधी जी प्रथम श्रेणी का टिकट लेकर ट्रेन में सफ़र कर रहे थे, टिकट होने के बाद भी उन्हें प्रथम श्रेणी के डिब्बे से बाहर ढकेल दिया गया, क्योंकि उस समय प्रथम श्रेणी गोरे लोगों के लिए आरक्षित हुआ करता था तथा उस आरक्षित डिब्बे में किसी भारतीय और अश्वेत लोगों का सफ़र करना प्रतिबन्धित था |

गाँधी जी के साथ हुई इस घटना ने उनके मन में अत्यधिक प्रभाव डाला और उन्होंने नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष करने का फैसला ले लिया | 22 मई 1894 को महात्मा गाँधी जी ने नाटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना करी और दक्षिण अफ्रीका में भारतियों के अधिकारों के लिए लड़ने लगे | देखते ही देखते कुछ ही समय में गाँधी जी अफ्रीका में भारतीय समुदाय के नेता बन गए और उस समय से सभी भारतियों के अधिकारों के लिए डटकर संघर्ष किया |

Mahatma Gandhi जी के द्वारा भारत की स्वतंत्रता के लिए किये गए संघर्ष

Mahatma Gandhi जी जब वर्ष 1914 में बेरिस्टर बनकर दक्षिण अफ्रीका से भारत बापस लौटे तो उन्होंने भारत देश को स्वतंत्र कराने की ठान ली | जैसा कि आप जानते ही होंगे कि गाँधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे इसलिए स्वतंत्रता के लिए उनके द्वारा उठाये गए कदम अत्यधिक शान्तिप्रिय होते थे | भारत को स्वतंत्र करने के लिए गाँधी जी के द्वारा कई सफल आन्दोलन किये गए जिनका भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान है | आगे के लेख में हम अपने सभी पाठकों को गांधी जी के द्वारा किये गए आन्दोलनों के बारे में विस्तार से बताएँगे |

चम्पारण आन्दोलन / खेडा सत्याग्रह

भारत देश को स्वतंत्र कराने की इच्छा रखते हुए गाँधी जी ने चम्पारण आन्दोलन का आगाज किया जो कि गांधी जी के द्वारा किया गया प्रथम आन्दोलन था | यह आन्दोलन वर्ष 1918 में प्रारम्भ किया गया था और यह आन्दोलन अंग्रेजी शासन में चल रही तिनकठिया पद्धति को लेकर था | तिनकठिया पद्धति के अन्तर्गत अंग्रेज बागान मालिकों और किसानो के बीच एक करार हुआ था जो कि बाद में किसानो के लिए सिरदर्द बन चुका था | किसानो को इस तिनकठिया पद्धति से मुक्त कराने के लिए गाँधी जी द्वारा यह सत्याग्रह प्रारम्भ किया गया |

इस पद्धति के अन्तर्गत अंग्रेज बागान मालिकों ने किसानों से एक करार करवा लिया था कि किसानों को अपने कृषिजन्य क्षेत्रों के 3/20 वें भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य है | प्रारम्भ में तो किसानों की इस पद्धति से किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं थी किन्तु 19 वीं सताब्दी के अंतिम दिनों में रासायनिक रंगों की खोज होने लगी और वे बहुत जल्द ही प्रचलन में भी आ गए, जिसकी बजह से नील का उपयोग काफी कम हो गया |

नील की उपयोगिता कम होने पर अंग्रेजों ने धीरे धीरे नील के कारखाने बंद करने प्रारम्भ कर दिए, जिस बजह से नील की मांग बहुत कम हो गयी | करार के मुताबिक किसानों को नील की खेती करना अनिवार्य था जिसकी बजह से किसानों को भारी मात्रा में नुकसान का सामना करना पड़ रहा था, जिस बजह से सभी किसान तिनकठिया पद्धति का अंत चाहते थे |

तिनकठिया पद्धति से किसानों को मुक्त करने के लिए अंग्रेजों ने किसानो से भारी लगान की मांग करी, जिससे परेशान होकर किसानो ने विद्रोह किया और गाँधी जी ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया | चम्पारण आन्दोलन में गाँधी जी के कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर रविन्द्रनाथ टैगोर जी ने गाँधी जी को महात्मा के नाम से संबोधित किया, तभी से उन्हें महात्मा गाँधी के नाम से जाना जाता है |

असहयोग आन्दोलन

1 अगस्त 1920 से गाँधी जी के द्वारा आरम्भ किये गए असहयोग आन्दोलन का संचालन स्वराज की मांग को लेकर किया गया था और इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सरकार के साथ सहयोग ना करके कार्यवाही में बाधा डालना था | 1 सितम्बर 1920 में असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रमों पर विचार करने हेतु कलकत्ता में “कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन” का आयोजन किया गया तथा इस समिति की अध्यक्षता लाला लाजपत राय जी के द्वारा की गयी |

कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गाँधी जी ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि “अंग्रेजी सरकार शैतान है, जिसके साथ सहयोग सम्भव नहीं है | अंग्रेज सरकार को अपनी गलतियों पर कोई दुःख नहीं है, अतः हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि नवीन व्यब्स्थापिकाएं हमारे स्वराज का मार्ग प्रसस्त करेंगी | स्वराज की प्राप्ति के लिए हमारे द्वारा प्रगतिशील अहिंसात्मक असहयोग की नीति अपनाई जानी चाहिए |”

असहयोग आन्दोलन के दौरान विधार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कोलेजों में जाना छोड़ दिया और साथ में वकीलों ने भी अदालत में जाने से मना कर दिया, कई जगह श्रमिक भी हड़ताल पर चले गए , जिसकी बजह से अंग्रेजी सरकार की नीव ही हिल गयी | सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1921 में 396 हड़तालें हुई, जिनमे लगभग छ: लाख श्रमिक शामिल थे | इस दौरान 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ जो कि एक बहुत बड़ा आंकड़ा है |

नमक सत्याग्रह आन्दोलन

Mahatma Gandhi जी के प्रमुख आंदोलनों में से एक नमक सत्याग्रह आन्दोलन भी है जो कि ब्रिटिश राज्य के एकाधिकार के खिलाफ निकाला गया था | इस आन्दोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से हुई थी | गाँधी जी ने साबरमती आश्रम से दांडी गाँव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था | अहिंसा के साथ प्रारम्भ हुए नमक सत्याग्रह आन्दोलन ने अंत तक बगावत का रूप ले लिया था |

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उस समय अंग्रेजी शासन चाय, कपडा तथा नमक पर एकतरफा अधिकार किया करते थे और उस समय भारतियों को नमक बनाने का भी अधिकार नहीं था | भारतीय उस समय नमक इंग्लेंड से मंगाया करते थे, जिसकी बजह से नमक भारतियों को अत्यधिक महंगा पड़ता था | गाँधी जी ने देश को आजाद करने की ठान रखी थी और वे चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनसे जुड़ जाएँ |

गाँधी जी के मन में विचार आया कि नमक ही एक ऐसी चीज है जिसकी आवश्यकता प्रत्येक भारतीय को है | यही कारण है कि अंग्रेजों के खिलाफ अधिक से अधिक लोगों को खड़ा करने के लिए गाँधी जी ने नमक का सहारा लिया और काफी लोगों को बहुत ही जल्द अपने साथ जोड़ लिया | गांधी जी के नमक सत्याग्रह का जगह-जगह पर स्वागत किया गया और सभी भारतीय उनसे जुड़ गए |

भारत छोडो आन्दोलन

अंग्रेजों भारत छोडो आन्दोलन” का प्रस्ताव 14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति ने पारित किया एवं इसकी सार्वजनिक घोषणा के साथ 1 अगस्त को इलाहबाद में तिलक दिवस मनाया गया | माना जाता है कि यह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का अंतिम सबसे बड़ा आन्दोलन था, जिसमे सभी भारतियों ने बड़े स्तर पर भाग लिया था | 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक मुम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में हुई और “भारत छोडो आन्दोलन” के प्रस्ताव को मंजूरी मिली | भारत छोडो आन्दोलन को “अगस्त क्रान्ति” के नाम से भी जाना जाता है |

इस आन्दोलन के दौरान गाँधी जी के द्वारा ग्वालिया टैंक मैदान में “करो या मरो” का नारा दिया गया था , गाँधी जी ने कहा था कि एक छोटा सा मन्त्र है जो मै आपको देता हूँ, इसे आप अपने ह्रदय में अच्छी तरह से अंकित कर लीजिये | “करो या मरो” ही वह मन्त्र था जो गाँधी जी के द्वारा सभी भारतवासियों को दिया गया था |

महात्मा गाँधी जी की मृत्यु

Mahatma Gandhi जी की मृत्यु प्राकृतिक नहीं थी बल्कि उनकी हत्या की गयी थी | 30 जनवरी 1948 को 5 बजकर 17 मिनट पर नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने बिरला हाउस में गाँधी जी के ऊपर 3 गोलियां दागी जिससे घटनास्थल पर ही उनकी मृत्यु हो गयी | नाथूराम गोडसे एक हिन्दू राष्ट्रवादी तथा हिन्दू महासभा का सदस्य था और महात्मा गाँधी के अहिंसावादी सिद्धांत का विरोधी था | कहा जाता है कि गोडसे ने महात्मा गाँधी जी पर पाकिस्तान का पक्ष लेने का आरोप लगाया था, और गोडसे का महात्मा गाँधी जी की गोली मारकर हत्या करने का कारण भी यही बताया जाता है |

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Another Link : Wikipedia

[su_box title=”पाठकों से एक छोटी गुजारिश ” style=”soft”]उम्मीद करते हैं कि Mahatma Gandhi ( महात्मा गाँधी ) जी की जीवनी पढ़कर आपने उनके जीवन से कई शिक्षाएं ग्रहण की होंगी तथा आपको भी उनके जीवन से मोटिवेशन मिला होगा | हमारा सभी पाठकों से आग्रह है कि इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करें ताकि हिन्दुस्तान का प्रत्येक नागरिक महात्मा गाँधी जी की जीवनी से कुछ ना कुछ सीख सके | धन्यवाद[/su_box]

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